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हमारे जीवन से लेकर मृत्यु तक कुल 16 संस्कारों का वर्णन है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक, यह सोलह संस्कारों का अनुष्ठान किया जाता है। हमने आपको गर्भाधान और पुंसवन संस्कार के संबंद मे पहले ही जानकारी दे चुके है। आज हम आपको सीमन्तोन्नयन संस्कार की जानकारी देने जा रहे है। सीमन्तोन्नयन संस्कार के अनुष्ठान को पुंसवन संस्कार के बाद विधिपूर्वक रूप से किया जाता है।
सीमन्तोन्नयन दो शब्दों से मिलकर बना है जो की है सीमन्त और उन्नयन। सीमन्त का अर्थ है 'केश और उन्नयन का अर्थ है ऊपर उठाना। इस संस्कार के अंतर्गत पति आपकी पत्नी के केशों को गूलर की टहनी से ऊपर की ओर उठाता है। यह ही इस अनुष्ठान का मुख्य विधान है। तो चलिए जानते है की क्या है सीमन्तोन्नयन संस्कार और इस संस्कार का हमारे जीवन मे क्या महत्व है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार क्या है?
येनादिते सीमानं नयति प्रजापतिर्महते सौभगाय!
तेनाहमस्यै सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टि कृणोमी!!
जब गर्भावस्था के समय मां के पेट मे शिशु 6 महीने का हो जाता है, तब उस समय सीमन्तोन्नयन संस्कार का अनुष्ठान करवाया जाता है। इस संस्कार की मदद से गर्भवती महिला को मानसिक बल प्रदान किया जाता है। साथ ही महिला के मन मे सकारात्मक विचारों के संचार हेतु इस संस्कार के अनुष्ठान को करवाया जाता है। बताया जाता है की गर्भावस्था के समय 6 महीने के पूर्ण शिशु का विकास हो जाता है। इस अवधि मे शिशु का मानसिक विकास होने लग जाता है।
इस अवधि मे शिशु के मन मे नई नई इच्छा पैदा होने लगती है। शिशु के मानसिक विकास के लिए इन इच्छाओ की पूर्ति होनी अति आवश्यक है क्योंकि शिशु 6 महीने बाद गर्भ मे रहकर सब समझने लग जाता है। अतः गर्भावस्था के 6 या 8 महीने पूर्ण हो जाने के बाद इस अनुष्ठान को करना आवश्यक है।
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सीमन्तोन्नयन संस्कार का महत्व
जब पुंसवन संस्कार का अनुष्ठान किया जाता है तब शिशु गर्भ मे सिर्फ एक मांस का पिंड होता है। जब शिशु चार महीने का हो जाता है तब उसका मानसिक और शारीरिक विकास तेजी से होने लगता है। उसी प्रकार गर्भवती माता के शरीर एवं मानसिकता मे भी परिवर्तन होने लगते है। इसी वजह से यह जरूरी है की माता की इच्छा पूर्ण की जाए जिससे उनके पेट मे पल रहे शिशु का मानसिक विकास हो सके। इसी कारण से सीमन्तोन्नयन संस्कार एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
इस संस्कार को करने से गर्भ मे पल रहे अजन्मे शिशु की ग्रहण शक्ति विकसित होने लग जाती है। इस संस्कार के अनुष्ठान मे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, आदि के मंत्रों का जाप किया जाता है। साथ ही गर्भ मे पल रहे शिशु को नवग्रह मंत्रों की मदद से संस्कारित किया जाता है। इस संस्कार की सहायता से शिशु को ग्रहों की अनुकूलता का लाभ प्राप्त होता है। साथ ही अगर कोई प्रारम्भिक दुर्योग होता है तो उससे भी निजाद मिल जाती है। इस संस्कार का अनुष्ठान शिशु के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। आधुनिक रूप से देखा जाए तो जो हम baby shower का अनुष्ठान करते है वो पुंसवन और सीमन्तोन्नयन का मेल है। परंतु सीमन्तोन्नयन संस्कार मे ज्योतिष द्वारा शुभ मुहूर्त की जानकारी ली जाती है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार की विधि
इस अनुष्ठान के अंतर्गत पति को गूलर की टहनी से पत्नी के केश उठाने होते है और पत्नी को ॐ भूर्विनयामि का जाप करना होता है। साथ मे पति को नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करना होता है।
येनादिते: सीमानं नयाति प्रजापतिर्महते सौभगाय।
तेनाहमस्यौ सीमानं नयामि प्रजामस्यै जरदष्टिं कृणोमि।।
अर्थात जिस प्रकार ब्रह्मा ने देवमाता अदिति का सीमन्तोन्नयन किया था उसकी के प्रारूप गर्भवती महिला का सीमन्तोन्नयन करके अपनी संतान को दीर्घजीवी होने की कामना करता हु। इसके पश्चात गर्भवती महिला को किसी वृद्ध महिला का आशीर्वाद लेना होता है। साथ ही महिला को खिचड़ी मे घी मिलाकर सेवन करना चाहिए। इस विषय मे शास्त्रों मे एक उल्लेख है:
किं पश्यास्सीत्युक्तवा प्रजामिति वाचयेत् तं सा स्वयं।
भुज्जीत वीरसूर्जीवपत्नीति ब्राह्मण्यों मंगलाभिर्वाग्भि पासीरन्।।
अर्थात खिचड़ी का सेवन कराते हुए महिला से प्रशन पूछा गया की तुम क्या देखती हो, तो महिला जवाब देती है की मै अपनी संतान को देखती हूं। इसके पश्चात वे खिचड़ी का सेवन करती है। जो महिला संस्कार मे उपस्थित होती है वे गर्भवती महिला को आशीर्वाद देती है की तुम्हारा कल्याण हो और तुम्हें एक सुंदर एवं संस्कारी संतान की प्राप्ति हो
सीमन्तोन्नयन संस्कार नक्षत्र चयन:
सीमन्तोन्नयन संस्कार को विधिपूर्वक पूर्ण करने के लिए शुभ नक्षत्रों में मृगशिरा, मूल, पुष्य, श्रवण, पुनर्वसु, हस्त आदि नक्षत्रों का होना आवश्यक है। इस कार्य को विधि पूर्वक पूरा करने के लिए गुरुवार, मंगलवार एवं रविवार का दिन शुभ माना जाता है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार के लिये तिथि व लग्न समय
इस संस्कार को करने के लिए 4,9,14,30,12,6,8 वीं तिथियों को छोड़कर अन्य तिथियों पर इस संस्कार को करना शुभ माना जाता है। यह संस्कार इन मास के स्वामी के बलवान होने पर करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। जिस समय शुभ ग्रह केंद्र व त्रिकोण गोचर में हो वह लग्न समय इस संस्कार को करने के लिए अनुकूल है।
साथ ही 6, 8 एवं 12 घर का रिक्त होना भी शुभ माना जाता है। अगर इस संस्कार को 1, 2, एवं 5 लग्न समय में किया जाए तो शिशु एवं माता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। यह संस्कार प्रसव से पूर्व अंतिम व तीसरा संस्कार होता है इसलिए इस अनुष्ठान को उस समय करना आवश्यक है जब लग्न समय मे चंद्र, तारे आदि शुभ दिशा में हो। अगर यह सभी तत्व शुभ नहीं है तो मुहूर्त में जो अच्छा समय हो उसमें यह संस्कार आयोजित करना आवश्यक है।
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